भौतिक एवं सामाजिक संरचनाओं के आधार पर वर्ण और जाति का विश्लेषण करती यह किताब मूलतः यालावार्थी नवीन बाबू की एम.फ़िल. थीसिस पर आधारित है। नवीन बाबू इस व्यवस्था की जड़ों का इतिहास तलाशते हुए ऋग्वेद काल से पिछली सदी के उत्तरार्द्ध तक आते हैं।
वे लिखते हैं कि जैसे-जैसे समाज विकास की एक अवस्था से दूसरी में आगे बढ़ता है वैसे-वैसे असमानताएँ भी बढ़ती जाती हैं। वर्ण और जाति मूलतः दो भिन्न उत्पादन पद्धतियों से जुड़े हुए हैं। प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था सामाजिक वर्गों पर आधारित थी। कालांतर में यह जन्म पर आधारित होती चली गई। पुस्तक के अंत में नवीन बाबू पर केन्द्रित प्रो. मनोरंजन मोहंती, प्रो. वरवर राव, एम. नादराजा, एस. सैमुअल असिर राज, भूपेंद्र यादव और बाला के कुछ यादगार संस्मरण भी शामिल हैं।
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