हिंदी के शीर्षस्थ कथाकारों में शुमार शेखर जोशी 88 वर्ष की अवस्था में अपने बचपन को याद करते हैं तो वह उस दौर के पहाड़ी-ग्रामीण जीवन का रोचक, गुदगुदाने और रुलाने वाला वृतांत बनता है। बच्चे अपनी मिट्टी व फसलों से, फूलों-फलों से, पेड़-पौधों और पक्षियों से, जंगलों और नदियों से, पर्व-त्यौहारों-मेले-ठेलों से, मित्रों-सम्बंधियों और गांव-गिराम के विविध चरित्रों से कितने अभिन्न रूप से जुड़े होते थे!
शेखर जी के जनता का कथाकार बनने की प्रेरणाएं यहां मिलेंगी और उनके बहुत से पात्र भी। एक लेखक इसी तरह अपनी जड़ों को स्मृतियों में निरंतर सींचते हुए रचनाओं के लिए खाद-पानी पाता है।
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