‘नन्ही दोस्त के नाम’ संग्रह की कविताएँ जहाँ एक तरफ़ विविधताओं से भरे जीवनानुभवों से समृद्ध हैं वहीं दूसरी तरफ़ श्रेष्ठ कविता के प्रतिमानों पर भी खरी उतरती हैं। ये कविताएं उद्देश्यपरकता की कसौटी पर भी उतनी ही खरी हैं जितनी उच्चतर काव्यशिल्प पर। सत्तर के दशक की क्रांतिकारी कविताओं से यह कविताएं इस अर्थ में एकदम भिन्न हैं कि इनमें अपनी बात कहने के आवेश में कवि ने बात कहने के लहजे को नज़रअंदाज नहीं कर दिया है। फूल के रंग और गंध की तरह कवि की विचारधारा उसकी कविता का ही हिस्सा बन गई है।
ये कविताएं पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं, क्रांतिकारी गुस्से से भरती हैं और इस सड़ी हुई समाज व्यवस्था को बदल देने और बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करती हैं।
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