पिछले दो दशकों के दौरान भारत की शिक्षा प्रणाली में गतिरोध और पतन के ऐसे दृश्य उपस्थित हुए जिन्होंने शिक्षण व्यवस्था को आमूलचूल हिलाकर रख दिया है। सार्वजनिक संस्थाओं का क्षरण, स्कॉलरशिप में कमी, 40 प्रतिशत से लेकर 1100 प्रतिशत तक की गई बेतहाशा फ़ीस वृद्धि से देश के लगभग सारे विश्वविद्यालयों के छात्र प्रभावित हुए और अन्ततः जब वे इसके विरोध में धरना प्रदर्शन पर उतरे तो मौजूदा सरकार ने कठोरता से उनका दमन किया।
राष्ट्रीय स्तर के संगठन ‘पीपुल्स कमीशन ऑन श्रृंकिंग डेमोक्रेटिक स्पेस’ (पीसीएसडीएस) के 2016 के राष्ट्रीय सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि शैक्षणिक संस्थानों और प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े विषयों पर कार्यरत मानवाधिकार रक्षकों पर निरंतर हो रहे हमलों के लिए दो न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) होने चाहिए। दिल्ली में तीन दिनों के दौरान सम्मानित निर्णायक मंडल के सामने 17 विशेषज्ञों, 49 छात्रों और फ़ैकल्टी की मौखिक गवाहियों के लिप्यान्तरण स्वरूप निर्मित यह पुस्तक शैक्षणिक संस्थानों के वर्तमान परिदृश्य और उनकी ज्वलंत समस्याओं का दस्तावेज भी है।
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