इस पहले खंड में ज्ञानरंजन को लिखे सोलह लेखकों के कुछ चुने हुए पत्रों का संग्रह है। कोविड की वजह से इसमें तीन वर्षों का विलम्ब हुआ पर अब यह पहला खंड आपके सामने है। दूसरा खंड का बहुत जल्दी प्रकाशित होगा।
जिन सोलह लेखकों के पत्र इस खंड में हैं वे हैं, रामनाथ सुमन, भवदेव पाण्डेय, शील, अशोक सेकसरिया, सईद, काशीनाथ सिंह, कमलेश्वर, विजयदान देथा, मणि कौल व नेत्र सिंह रावत (संयुक्त), कुमार विकल, वीरेन डंगवाल, हृदयेश, सुमति अय्यर, भीष्म साहनी तथा राजेन्द्र यादव।
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‘ख़तों के आइने में’ कहानीकार और संपादक ज्ञानरंजन को 16 लेखकों द्वारा लिखे पत्रों का संचयन है। ये लेखक क्रमशः इस तरह हैं :
१. रामनाथ सुमन
२. भवदेव पांडेय
३. शील
४. अशोक सेकसरिया
५. सईद
६. काशीनाथ सिंह
७. कमलेश्वर
८. विजयदान देथा
९. नेत्र सिंह रावत
१०. मणि कौल
११. कुमार विकल
१२. वीरेन डंगवाल
१३. हृदयेश
१४. सुमति अय्यर
१५. भीष्म साहनी
१६. राजेंद्र यादव
एक बात जो इस किताब को ख़ास बनाती है वह है पत्रों के साथ -साथ इनके चयनकर्ता प्रियंवद की टिप्पणियां। इन टिप्पणियों के चलते पत्रों में छिपी बहुत ही बातें और सन्दर्भ हम समझ पाते हैं और इस तरह 1960 से लेकर अगले पचास सालों तक का हिंदी का साहित्यिक वृत्त हमें समझ आता है।
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