किताब के बारे में :
फेक न्यूज, मीडिया और लोकतंत्र
पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ फेक न्यूज एक बड़ी समस्या के रुप में सामने आया है. भारत जैसे अपेक्षाकृत अधिक निरक्षरता दर वाले विशाल देश में यह समस्या और भी गंभीर है क्योंकि जाने-अनजाने लोग देखी-सुनी बातों पर सहज विश्वास कर लेते हैं. दूसरी तरफ़ तमाम सारी वजहों से सोशल मीडिया के साथ साथ अब मुख्य धारा की मीडिया, अखबार और टीवी चैनल भी न्यूज के नाम पर तमाम तरह की भ्रामक, बेबुनियाद और मनगढ़ंत सामग्री परोसने लगे हैं. ऐसी स्थिति में ज्यादा से ज्यादा लोग अपने मन मुताबिक सूचना पाने या खबर देखने के लिए सोशल मीडिया का रुख कर रहे हैं. यह प्रक्रिया लगातार हमें एक खास तरह की चीजों को अधिक से अधिक देखने सुनने और विरोधी विचारों से दूर कर रही है. इसका असर यह हो रहा है कि ज्यादा से ज्यादा लोग जाने अनजाने फेक न्यूज का शिकार हो रहे हैं, जो किसी भी मुद्दे पर उनके निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है. क्योंकि हम गलत जानकारी के बल पर सही निर्णय नहीं ले सकते.
यह किताब एक लोकतंत्र में मीडिया और सोशल मीडिया के महत्व और फेक न्यूज के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करते हुए इसके खतरे से आगाह और बचने के तरीकों पर विस्तार से बात करती है.
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