‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ भारत और दुनिया के सबसे प्रसिद्ध एवं सुस्थिर जन आन्दोलनों में से एक है और इसे रचने वाले अभी भी इसे लगातार परिभाषित कर रहे हैं। यह पुस्तक एक तरह से आन्दोलन के पुनरावलोकन की मानिंद है और सामूहिक प्रयास में निहित ताकत का उदाहरण भी। आन्दोलन के कार्यकर्ता ही इस पुस्तक में संग्रहित गाथाओं के रचियता हैं। यह गाथाएँ सामूहिक वास्तविकता के एकतरफ़ा नज़रिए और विकास के नव-उदारवादी विचार, खासकर बड़े बाँधों को निर्माण के संदर्भ में समीक्षात्मक नज़रिए से चुनौती देती हैं। यह निर्णय की अलोकतांत्रिक प्रक्रिया, पर्यावरण हानि, सम्पूर्ण समुदाय की आजीविका के विनाश और प्राकृतिक संसाधनों की साझा विरासत की अपूरणीय क्षति को भी चुनौती देती हैं। ये ऐसे प्रमाणित कथन हैं जो वंचितों की वास्तविकताओं की सत्यता का ऐसा दृष्टिकोण जिसे “कार्यकर्ता ” अक्सर विस्तारित करते हैं और जिसे सत्ता का प्रभावशाली तंत्र लगातार नकार रहा है, को स्थापित करते हैं। संविधान का“हम, भारत के लोग” भारतीयों के सामाजिक राजनीतिक कलेवर के बेहद जटिल ढांचे को जोड़ता है, क्योंकि वास्तव में हममें से कोई भी यह दावा नहीं कर सकता, कि हम सभी का प्रतिनिधित्व करते हैं । अतएव इन परिस्थितियों और तर्कों के आरोप-प्रत्यारोप के बीच यह “बहुजन गाथाएँ” सच को जी रहे लोगों की विश्वसनीयता स्थापित करती हैं।
दस्तावेज़
नर्मदा घाटी से बहुजन गाथाएँ (दस्तावेज़) 2022
₹350.00 – ₹750.00
- संपादक : ओजस एस वी, मधुरेश कुमार, विजयन एम जे, जो अत्यालि
- पृष्ठ : 248, कागज़ : 70 GSM, नेचुरल शेड, साइज़: डिमाई
Binding | Paperback, Hardcover |
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