जातिप्रथा-उन्मूलन – डॉ. भीम राव अंबेडकर (विमर्श) 2020 | पेपरबैक

80.00

  • लेखक   : डॉ. भीम राव अंबेडकर
  • पृष्ठ : 86, कागज़ : 70 gsm नेचुरल शेड, साइज़: डिमाई
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‘जातिप्रथा उन्मूलन’ डॉ. अम्बेडकर का बहुचर्चित लेख है जो 1936 में लाहौर के ‘जातपात तोड़क मंडल’ के वार्षिक अधिवेशन में दिए जाने वाले भाषण का लिखित रूप है। इसमें व्यक्त किये गए विचारों को सहन न कर सकने की स्थिति में जातपात तोड़क मंडल ने बाबा साहब से इस भाषण में परिवर्तन करने को कहा। जब डॉ. आंबेडकर ने ऐसा करने से इंकार किया तो वह सम्मेलन रद्द कर दिया गया था। इस भाषण में डॉ. अम्बेडकर ने जाति प्रथा के भारतीय समाज पर दुष्प्रभाव की चर्चा करते हुए, जाति को सही ठहराने या उपेक्षा करने वालों से बहस करते हुए इसे भारतीय समाज और हिन्दू धर्म दोनों के लिए घातक बताया। वेदों और शास्त्रों से छुटकारा पाकर अंतरजातीय विवाह के जरिये जाति उन्मूलन की एक सम्भव राह भी उन्होंने सुझाई।

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