घर लौटने का सपना – आज की फ़िलिस्तीनी कविता – यादवेन्द्र (कविता), 2024 | पेपरबैक

225.00

  • चयन व अनुवाद : यादवेन्द्र
  • पृष्ठ : 179 , कागज़ : 70 gsm, नेचुरल शेड, साइज़: डिमाई
Guaranteed Safe Checkout

पश्चिमी देशों की दुरभि संधियों के चलते इतिहास के सबसे क्रूर साढ़े सात दशक से ज्यादा जारी युद्ध और गैरकानूनी अनैतिक आधिपत्य ने फ़िलिस्तीन से बड़ी संख्या में जिन लोगों को विस्थापित किया उनमें से लाखों लोग दूसरे देशों में जाकर बस गए। भले ही उनके ऊपर जीवन भर शरणार्थी होने का ठप्पा लगा रहा और उन्होंने मजबूरी में अपने तरीके से जीवन के नए अध्यायों को लिखना शुरू किया। लेकिन पीढ़ियां बदल जाने के बाद भी निष्कासन की भयावह स्मृतियाँ उनका पीछा नहीं छोड़तीं। उन्हें अक्सर पीछे छूट गए लोग, घर, पेड़, फल, फूल, धरती, समुद्र किनारा, आकाश, रंग, गंध सब याद आते हैं। और दशकों बाद कड़ी मेहनत और लगन से हासिल तमाम सुख सुविधाओं और अच्छे पेशों के बावजूद उनका फ़िलिस्तीनीपन नहीं छूटता।

यह संकलन पीढ़ी दर पीढ़ी घर को न भूलने और वापस लौटने के सपने के साथ जीते रहने इसी ज़िद का कविता पक्ष है।

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

Shopping Cart
घर लौटने का सपना – आज की फ़िलिस्तीनी कविता – यादवेन्द्र (कविता), 2024 | पेपरबैक
225.00
Scroll to Top