आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी ने दलित अध्ययन को व्यवस्थित रूप देते हुए इसे अखिल भारतीय संदर्भों से जोड़ा है। जन्म से दलित न होने के कारण उनकी दलित आलोचना पर प्रश्नचिह्न लगाए जाते हैं, किन्तु सवाल खड़े करने वाले विद्वान ये बात भूल जाते हैं कि सर्वप्रथम उन्होंने ही यह शिकायत की थी कि गैरदलित आलोचक उनकी अनदेखी कर रहे हैं। उन्हें यह ध्यान भी रखना चाहिए कि आलोचक की दृष्टि सदैव प्रशंसात्मक नहीं हो सकती। किसी गैरदलित की आलोचना में स्वानुभूति के अभाव से कुछ कमी भले ही रह जाती हो किन्तु आलोचना में तटस्थ होने का जो दुर्लभ गुण है, वह इस अभाव की ज़रूरत से ज़्यादा भरपाई करने में सक्षम है।
आलोचना
दलित साहित्य : एक अंतर्यात्रा (आलोचना) | दूसरा संस्करण | 2023
₹350.00 – ₹550.00
- लेखक : बजरंग बिहारी तिवारी
- पृष्ठ : 235, कागज़: 70 GSM सनशाइन, साइज़: डिमाई
Backcover | Paperback, Hardcover |
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