रमा शंकर यादव ‘विद्रोही‘ के इस बहुचर्चित संकलन में उनकी वो तमाम कविताएँ उपस्थित हैं जिनके कारण उनकी एक निराले कवि के रूप में पहचाने गए।
विद्रोही का जीवन चाहे जितना अराजक और असंतुलित रहा हो, अपनी कविताओं में वे पूरी तरह एक मुक़म्मल कवि दिखाई पड़ते हैं। उनकी कविता में व्यक्तिगत सुख, दुःख की बजाय समष्टि की चिन्ता है। उनकी आस्था समूह के प्रति है। सामान्य बोलचाल की भाषा में गंभीर आशय की कविताएँ लिखने वाले विद्रोही इतिहास, मिथक और समकालीनता को इतनी कुशलता से साध लेते हैं कि साधारण पाठक भी उनसे सहजता से जुड़ जाता है।
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