‘मैंने पाले सुंदर हारिल’ की लेखिका इंदु बाला मिश्र हिंदी पाठकों के लिए एक ऐसा अपरिचित नाम है जिसे दशकों पहले ही अपने अस्तित्व में आ जाना था। जीवन की जद्दोजहद में इंदु जी की कविताएँ कहीं गुम हो गयीं और साथ ही गुम हुई कविताओं को लेकर एक नवयुवती की उत्कंठ इच्छा जिसने उसे जीवन के तमाम झंझावातों से बचाए रखा। उम्मीद है हिंदी के नए पाठकों को कविताओं को लेकर यह बेचैनी रचनात्मक रूप से परेशान करेगी और कविताओं की जमीन को पकड़कर चलने का आग्रह भी।
यह किताब ऐसे विशिष्ट रूपाकार में प्रकाशित हुई है कि कोई भी कविता प्रेमी पाठक इसे उपहारस्वरूप पाकर आनंदित होगा।
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